ज़मीर जाफ़री जिन दिनों स्टेलाइट टाउन में रहते थे। एक जैसे मकानों के नक़्शे की वजह से एक शाम भूल कर किसी और के दरवाज़े पर दस्तक दे बैठे। दरवाज़ा खुलने पर दूसरी औरत को देखकर जाफ़री साहिब को अपनी ग़लती का एहसास हो गया। फ़ौरन वापस पलटे। इस फे़’ल का ज़िक्र जब जाफ़री साहिब ने एक दोस्त से किया तो उसने सवाल किया : “जाफ़री साहिब, आपको ग़लत घर का दरवाज़ा खटखटाने पर शर्मिंदगी नहीं हुई?” “मुझे इस फे़’ल पर तो कोई शर्मिंदगी नहीं हुई, लेकिन ये देखकर ज़रूर तकलीफ़ हुई कि दरवाज़ा खोलने वाली औरत मेरी बीवी से भी बदसूरत थी।” जाफ़री साहिब ने जवाब दिया।