अमरोहा में मुशायरा बहुत सुकून से चल रहा था। शायर भी मुतमइन और सुनने वाले भी ख़ुश कि बीच मजमे से एक बहुत मा’क़ूल शख़्सियत वाले साहिब उठे और खड़े हो कर आ’दिल लखनवी की तरफ़ इशारा करके बोले, “डाक्टर साहिब, वो शायर जिनकी सूरत तारा मसीह (जिस जल्लाद ने वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान ज़ुल्फ़क़ार अली भुट्टो को फांसी दी थी) के हू-ब-हू है, उन्हें पढ़वा दीजिए।” बशीर बद्र ने अपनी मख़सूस मुस्कुराहट के साथ आ’दिल लखनवी को दा’वत-ए-सुख़न देते हुए कहा, “मैं शायरी के तारा मसीह से दरख़्वास्त करता हूँ कि तशरीफ़ लाएं और अमरोहा के ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो का काम तमाम कर दें।”