जिगर मुरादाबादी के किसी शे’र की तारीफ़ करते हुए किसी मनचले ने उनसे कहा, “हज़रत! उस ग़ज़ल के फ़ुलां शे’र को मैंने लड़कियों के एक हुजूम में पढ़ा और पिटने से बाल-बाल बचा।” जिगर साहब ने हँसते हुए कहा, “अ’ज़ीज़म! उस शे’र में ज़रूर कोई ख़ामी होगी वरना आप ज़रूर पिटते।”