दिल्ली के एक मुशायरे में कँवर महिन्द्र सिंह बेदी ने शायरों को डायस पर बुलाया तो तर्तीब ऐसी रखी कि शायरात उनके क़रीब रहें। मुशायरे के बाद ख़लीक़ अंजुम बेदी साहिब से कहने लगे कि आप जब किसी शायरा को दाद देते हैं तो आपका हाथ लहराने के बजाय उसकी पीठ पर ज़्यादा देर तक सरकता रहता है। बेदी साहिब ने फ़ौरन जवाब दिया: “दाद देने का यही अंदाज़ तो दाद तलब है।”