कल इक अदीब ओ शाएर ओ नाक़िद मिले हमें कहने लगे कि आओ ज़रा बहस ही करें करने लगे ये बहस कि अब हिन्द ओ पाक में वो कौन है कि शायर-ए-आज़म जिसे कहें मैं ने कहा 'जिगर' तो कहा डेड हो चुके मैं ने कहा कि 'जोश' कहा क़द्र खो चुके मैं ने कहा 'फ़िराक़' की अज़्मत पे तब्सिरा बोले 'फ़िराक़' शायर-ए-आज़म अरा-ररा मैं ने कहा 'नदीम' तो बोले कि जॉर्नलिस्ट मैं ने कहा 'रईस' तो बोले स्टायरिस्ट मैं ने कहा कि हज़रत-ए-'माहिर' भी ख़ूब हैं कहने लगे कि उन के यहाँ भी उयूब हैं मैं ने कहा कुछ और तो बोले कि चुप रहो मैं चुप रहा तो कहने लगे और कुछ कहो मैं ने कहा कि 'साहिर' ओ 'मजरूह' ओ जाँ-निसार बोले कि शाइरों में न कीजे इन्हें शुमार मैं ने कहा कलाम-ए-'रविश' ला-जवाब है कहने लगे कि उन का तरन्नुम ख़राब है मैं ने कहा तरन्नुम-ए-'अनवर' पसंद है कहने लगे कि उन का वतन देओबंद है मैं ने कहा कि उन की ग़ज़ल साफ़-ओ-पाक है बोले कि उन की शक्ल बड़ी ख़ौफ़नाक है मैं ने कहा कि ये जो हैं 'महशर'-इनायती? कहने लगे कि रंग है उन का रिवायती मैं ने कहा 'क़मर' का तग़ज़्ज़ुल है दिल-नशीं कहने लगे कि उन में तो कुछ जान ही नहीं मैं ने कहा 'नियाज़' तो बोले कि ऐब हैं मैं ने कहा 'सुरूर' तो बोले कि नुक्ता-चीं मैं ने कहा ,ज़रीफ़' तो बोले कि गंदगी मैं ने कहा 'सलाम' तो बोले कि बंदगी मैं ने कहा 'फ़राज़' तो बोले कि ज़ेर-ओ-बम मैं ने कहा 'अदम' तो कहा वो भी कल-अदम मैं ने कहा 'ख़ुमार' कहा फ़न में कच्चे हैं मैं ने कहा कि 'शाद' तो बोले कि बच्चे हैं मैं ने कहा कि तंज़-निगारों में देखिए बोले कि सैकड़ों में हज़ारों में देखिए मैं ने कहा कि शायर-ए-आज़म हैं 'जाफ़री' कहने लगे कि आप की है उन से दोस्ती मैं ने कहा कि ये जो हैं 'महशर'-इनायती कहने लगे कि आप हैं उन के हिमायती मैं ने कहा 'ज़मीर' के हियूमर में फ़िक्र है बोले ये किस का नाम लिया किस का ज़िक्र है मैं ने कहा कि ये जो दिलावर-फ़िगार हैं बोले कि वो तो सिर्फ़ ज़राफ़त-निगार हैं मैं ने कहा मिज़ाह में इक बात भी तो है बोले कि इस के साथ ख़ुराफ़ात भी तो है मैं ने कहा तो शायर-ए-आज़म कोई नहीं कहने लगे कि ये भी कोई लाज़मी नहीं मैं ने कहा तो किस को में शाएर बड़ा कहूँ कहने लगे कि मैं भी इसी कश्मकश में हूँ पायान-ए-कार ख़त्म हुआ जब ये तज्ज़िया मैं ने कहा हुज़ूर तो बोले कि शुक्रिया