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चाँद बदन को चूम रहा है, दरिया गुमसुम लेटी हैपंखा झलती है हवाएँ, हलचल थोड़ी होती हैबादलों की छत से सितारे, देख रहे हैं आँखे फाड़ेबैठ गगन भी सोच रहा है, धरती सुंदर लगती हैआज भी परदेश गया है, सूरज शाम की गाड़ी सेदिन के रथ पे बैठके फिर से रात की रानी आई हैवक़्त का पहरा हुआ ढीला,उसने पी ली इश्क की बोतलमौसम भी आजाद हुआ है, मिलन की खुशबू उड़ती है