हर मेरे शे'र पर आ कर उसने तफ़्सीर रखी थी,जिस शे'र में उनकी और मेरी तक़दीर लिखी थी,वस्ल की ख़ुशी और हिज्र का ग़म भी लिखा था,हर वो जगह लिखी थी जहाँ जहाँ वोह दिखी थी,महफ़िल की रौनक भी, आँखों की मयकशी भी,जिक्र मीना का भी किया था मैय जिसमे चखी थी,तब्बसुम ओठो की,नजाकत भी बयाँ की थी उसमें,यह भी कहा था दास्ताँ-ए-इश्क़ में कैसी सखी थी,अब वोह किसी और की है तो क्या? मुहब्बत तो है,पल पल को याद करके शे'रो में कहानी लिखी थी !!!!नीशीत जोशी