मौका था बातें बताने का,टूटा आईना दिखाने का,फुर्सत ना पायी कभी रोने की,मेंरा पेशा था हसाने का,दास्ताँ ख़ूबां की कहें ना कोई,इल्जाम पाया दिल जलाने का,ना थी तवक़्क़ो ये हश्र की,हस हस के रोना जताने का,फुर्सत ना पायी जिगर रोंदने की,पेशा था वादा निभाने का,तेरी अज़मत ले मुझे आयी है,होगा इंतजाम दिल बसाने का !!नीशीत जोशी