पडा ना फर्क अनो जुबान लिखने से,जमीन जमीन ही रही आसमान लिखने से...रहा जिनसे हर घडी ताल्लुख मेरा,बन ना सका मेरा उसे साथी लिखने से...पनाह तक नही मिल सकी मुझे चंद पलो की,उजडे हुये बाग को मेरे गुलशन लिखने से...कडी तपिश मे झुलजता रहा बदन मेरा दोस्तो.,के धुप धुप ही रही मेरे सायबान लिखने से...!