आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम By Qita << अश्क आँखों में अब हैं आए ... मैं न कहा करता था साक़ी त... >> आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम भूल जाएँ ग़लत-सलत बातें आ किसी दिन के इंतिज़ार में दोस्त काट दें जाग जाग कर रातें Share on: