आदमी ज़ीस्त के वीरान निहाँ-ख़ानों में By Qita << आगही हद से गुज़र जाए तो ह... ज़मीन-ओ-अहल-ए-ज़मीं के बन... >> आदमी ज़ीस्त के वीरान निहाँ-ख़ानों में घूमता-फिरता है यूँ ले के सहारा दिल का अजनबी शहर में जैसे कोई राही शब को पूछता-फिरता हो बच्चों से पता मंज़िल का Share on: