और अरमान इक निकल जाता By Qita << उक़ाबी रूह किसी को देखूँ तो माथे पे ... >> और अरमान इक निकल जाता इक कली हँस के और खिल जाती काश इस तंग-दिल ज़माने से इक हसीं शाम और मिल जाती Share on: