छुप के आएगा कोई हुस्न-ए-तख़य्युल की तरह By Qita << नज़्र दें नफ़्स-कुश को दु... न लिक्खो वस्ल की राहत सली... >> छुप के आएगा कोई हुस्न-ए-तख़य्युल की तरह आज की रात चराग़ों को जलाना है मना खोल दो ज़ेहन के सहमे हुए दरवाज़ों को आज जज़्बात पे लहरों का बिठाना है मना Share on: