दुख की बुनियाद बना सिलसिला-ए-मर्ग-ओ-हयात By Qita << ग़ुर्बत-ओ-यास के मारे हुए... दास्ताँ अहल-ए-मोहब्बत की ... >> दुख की बुनियाद बना सिलसिला-ए-मर्ग-ओ-हयात काश इंसाँ कभी हस्ती का न होता तालिब नीस्ती आदम-ए-ख़ाकी के लिए बेहतर थी इस को होने ने डुबोया है ब-क़ौल-ए-'ग़ालिब' Share on: