फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद By Qita << फ़िदा-ए-मंज़िल-ए-बे-जादा ... फ़ज़ा है नूर की बारिश से ... >> फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद हवा मख़मूर है बादल ग़रीक़-ए-रंग-ओ-मस्ती हैं मिरा सरशार दिल मुझ से ये कहता है कि ऐ 'अख़्तर' ये बूँदें पड़ रही हैं या तमन्नाएँ बरसती हैं Share on: