फ़ज़ा-ए-दिल पे उदासी बिखरती जाती है By Qita << न लिक्खो वस्ल की राहत सली... दिल की धड़कन के पयामात से... >> फ़ज़ा-ए-दिल पे उदासी बिखरती जाती है फ़सुर्दगी है कि जाँ तक उतरती जाती है फ़रेब-ए-ज़ीस्त से क़ुदरत का मुद्दआ मालूम ये होश है कि जवानी गुज़रती जाती है Share on: