इक शिकस्ता से मक़बरे के क़रीब By Qita << उलझे हुए साँसों की घुटन क... दारोग़-गोई >> इक शिकस्ता से मक़बरे के क़रीब इक हसीं जूएबार बहती है मौत कितनी मुदाख़लत भी करे ज़िंदगी बे-क़रार रहती है Share on: