इस का क्या ग़म कि हुआ रंग-ए-जवानी रुख़्सत Admin सुहानी सुबह की शायरी, Qita << जो कभी खो दें कहीं ख़ुद क... कहे कोई शैख़ से ये जा कर >> इस का क्या ग़म कि हुआ रंग-ए-जवानी रुख़्सत दास्ताँ वस्ल की फ़ुर्क़त की कहानी रुख़्सत अब भी मैं क़स्र बनाता हूँ हसीं रातों में चाहता हूँ कि न हो याद सुहानी रुख़्सत Share on: