जो पूछा मुझ से दौर-ए-चर्ख़ ने क्या तू मुसलमाँ है मैं घबराया कि इस दरयाफ़्त में क्या रम्ज़ पिन्हाँ है करूँ इक़रार तो शायद ये बे-मेहरी करे मुझ से अगर इंकार करता हूँ तो ख़ौफ़-ए-क़हर-ए-यज़्दाँ है बिल-आख़िर कह दिया मैं ने कि गो मुस्लिम तो है बंदा व-लेकिन मौलवी हरगिज़ नहीं है ख़ानसामाँ है