कुंज-ए-ज़िंदाँ में पड़ा सोचता हूँ By Qita << मैं तो क्या मुझ को देखने ... शर्म दहशत झिझक परेशानी >> कुंज-ए-ज़िंदाँ में पड़ा सोचता हूँ कितना दिलचस्प नज़ारा होगा ये सलाख़ों में चमकता हुआ चाँद तेरे आँगन में भी निकला होगा Share on: