लब हमारे ख़मोश रहते हैं Admin ताली पर शायरी, Qita << मैं हूँ बेगाना-ए-जहाँ ... क्या कभी उस से मुलाक़ात ह... >> लब हमारे ख़मोश रहते हैं और करती हैं गुफ़्तुगू आँखें फैल जाए जहाँ में तारीकी बंद कर ले कभी जो तू आँखें Share on: