लाख काटो रगें सदाक़त की By Qita << दिन गुज़रता है उन की यादो... खड़खड़ाती डोल वो धम से कु... >> लाख काटो रगें सदाक़त की कब सदाक़त की रूह मरती है इस के इक एक क़तरा-ए-ख़ूँ से इक नई ज़िंदगी उभरती है Share on: