मेंह बरस कर थम गया है फट गए अब्र-ए-सियाह By Qita << कितने सपनों के मुकुट टूट ... वक़्त के साथ लोग कहते थे >> मेंह बरस कर थम गया है फट गए अब्र-ए-सियाह टहनियाँ हिल कर हवा से गिर रही हैं बूंदियाँ जिस तरह याद-ए-वतन में डूबते सूरज के वक़्त क़ैद-ख़ाने में नए क़ैदी के अश्कों का समाँ Share on: