रेश-ए-गुल को रग-ए-संग बनाने वालो By Qita << मेरे माज़ी से चली आती है ... ज़िंदगी इस तरह भटकती है >> रेश-ए-गुल को रग-ए-संग बनाने वालो बू-ए-गुल संग से टपकेगी शरारे बन कर तुम को मालूम तो होगा कि उजाला दिन का सीना-ए-शब में धड़कता है सितारे बन कर Share on: