सावन की ये रुत और ये झूलों की क़तारें By Qita << सेहन-ए-गुलशन में ढूँडती ह... यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस... >> सावन की ये रुत और ये झूलों की क़तारें उड़ती हुई ज़ुल्फ़ों पे मचलती हैं फुवारें मैं सुब्ह से नद्दी के किनारे पे खड़ा हूँ मल्लाह कहाँ हैं जो मुझे पार उतारें Share on: