सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी By Qita << दीवार-ए-शब और अक्स-ए-रुख़... चुपके चुपके जहाँ बसा लेता >> सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी ज़िंदगी ने यूँ तो पहले हम को तरसाया न था ख़ूब रोए छुप के घर की चार-दीवारी में हम हाल-ए-दिल कहने के क़ाबिल कोई हम-साया न था Share on: