ये फ़ज़ा, ये घाटियाँ, ये बदलियाँ ये बूंदियाँ By Qita << उन दिनों रस्म-ओ-रह-ए-शहर-... तीरगी के घने हिजाबों में >> ये फ़ज़ा, ये घाटियाँ, ये बदलियाँ ये बूंदियाँ काश इस भीगे हुए पर्बत से लहराती हुई धीरे धीरे नाचती आए सुबूही और फिर घुल के खो जाए कहीं मेरी ग़ज़ल गाती हुई Share on: