ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है By Qita << ज़ख़्म खाने के दिन गए लेक... ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश ... >> ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है जो देखे थे कभी आँखों ने वो नक़्शे दिखाता है मैं इक लम्हा नज़ारा कर लूँ अपने अहद-ए-माज़ी का ठहर ओ ख़ुश-नवा मुतरिब! मुझे कुछ याद आता है Share on: