अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं By Rubaai << नअत हर एक हक़ीक़त का फ़साना ह... >> अब हिन्द की ज़ुल्मत से निकलता हूँ मैं तौफ़ीक़ रफ़ीक़ हो तो चलता हूँ मैं तक़दीर ने बेड़ियाँ तो काटी हैं 'अनीस' क्यूँ रुक गए पाँव हाथ मलता हूँ मैं Share on: