दरवाज़े पे तेरे इक जहाँ झुकता है Admin इज्जत शायरी, Rubaai << हंगामा तिरा ही गर्म हर इक... फूलों की सुहाग सेज ये जोब... >> दरवाज़े पे तेरे इक जहाँ झुकता है ऊँचे ऊंचों का सर यहाँ झुकता है क्यूँ कर न झुके ज़मीं में वक़अत क्या है बा-इज्ज़-ओ-नियाज़ आसमाँ झुकता है Share on: