दुख में हर शब कराहता हूँ या-रब By Rubaai << महताब में सुर्ख़ अनार जैस... लचका लचका बदन मुजस्सम है ... >> दुख में हर शब कराहता हूँ या-रब अब ज़ीस्त के दिन निबाहता हूँ या-रब तालिब ज़र-ओ-माल के हैं सब दुनिया में मैं तुझ से तुझी को चाहता हूँ या-रब Share on: