ऐ रूह-ए-अवध तेरी मोहब्बत के निसार By Rubaai << तिरा अंदेशा अफ़्लाकी नहीं... आँखों में वो रस जो पत्ती ... >> ऐ रूह-ए-अवध तेरी मोहब्बत के निसार मैं और मिरा फ़न तेरी अज़्मत के निसार हाँ तुझ से बिछड़ कर न मिला चैन मुझे हैं ख़्वाब मिरे तेरी हक़ीक़त के निसार Share on: