का'बे में तो सिद्क़ और सफ़ा को पाया Admin मकसद शायरी, Rubaai << कुछ काम नहीं गबरू मुसलमाँ... जब तक है शबाब-ए-साज़गार-ए... >> का'बे में तो सिद्क़ और सफ़ा को पाया बुत-ख़ाने में नाज़ और अदा को पाया हासिल न हुआ कहीं से दिल का मक़्सद जब ख़ुद ही में ढूँढा तो ख़ुदा को पाया Share on: