हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई By Rubaai << एहसास के हर रंग को अपना ल... अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-... >> हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई एक आग सी हर तरफ़ लगाती आई खिलते जाते हैं ज़ख़्म-हा-ए-कोहना फिर सुब्ह-ए-बहार मुस्कुराती आई Share on: