इंसान तो नक़्द-ए-जाँ भी खो देता है By Rubaai << आ जा कि खड़ी है शाम पर्दा... है साथ इबादत के अबा भी ते... >> इंसान तो नक़्द-ए-जाँ भी खो देता है मुमकिन हो तो अपना निशाँ धो देता है रहता है यूँ जहाँ में गुम-सुम हो कर छेड़े जो कोई तो सिर्फ़ रो देता है Share on: