ज़ंजीर से होने का नहीं दिल भारी By Rubaai << जिस इल्म से अच्छों की हो ... हम भूल को अपनी इल्म-ओ-फ़न... >> ज़ंजीर से होने का नहीं दिल भारी हों पाँव में कितनी ही सलासिल भारी काबा का सफ़र ही क्या है घर से दर तक दिल से दिल तक मगर है मंज़िल भारी Share on: