जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें By Rubaai << जो हो न सका हम से वो कर ज... इस तरह तबीअत कभी शैदा न ह... >> जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें ले डूबेगी इक रोज़ यही प्यास हमें लो ख़त्म हुआ आज फ़रेब-ए-उम्मीद अब यास की जानिब से भी है यास हमें Share on: