कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है By Rubaai << किस नहज से हम ने इक कहानी... हर शय ब हर अंदाज़ अलग होत... >> कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है लिक्खा है बहुत लोगों ने सोचा कम है हर चंद कमी नहीं है लफ़्ज़ों की मगर लफ़्ज़ों के बरतने का सलीक़ा कम है Share on: