किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया Admin दिलबर की शायरी, Rubaai << क्या कहते हैं इस में मुफ़... ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुज... >> किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया दिल-ए-नज़र क्या सुराग़-ए-दिलबर पाया बाक़ी रहा मुद्दआ' न दा'वा न दलील खोए गए आप ही तो सब भर पाया Share on: