मरज़-ए-पीरी ला-इलाज है By Rubaai << ता-उम्र रहे हम गो सरगर्म-... सूरज पे जो थूकोगे तो क्या... >> अब ज़ोफ़ के पंजा से निकलना मालूम पीरी का जवानी से बदलना मालूम खोई है वो चीज़ जिस का पाना है मुहाल आता है वो वक़्त जिस का टलना मालूम Share on: