आँख अपनी तिरी अबरू पे जमी रहती है By Sher << हाँ ये मुमकिन है मगर इतना... वो जिन आँखों में थी बरसात... >> आँख अपनी तिरी अबरू पे जमी रहती है रोज़ इस बैत पे हम साद किया करते हैं Share on: