आँखें तिरी हर एक से मिलती हैं बे-हिजाब By Sher << जो दिन को निकलो तो ख़ुर्श... ये हाल है मिरे दीवार-ओ-दर... >> आँखें तिरी हर एक से मिलती हैं बे-हिजाब इन आहुओं में अब कोई वहशत नहीं रही Share on: