अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर By Sher << परवाने आ ही जाएँगे खिंच क... आज जुनूँ के ढंग नए हैं >> अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते Share on: