अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ By Sher << क़सम ख़ुदा की ये वारफ़्तग... जान पर अपनी हाए क्यूँ बनत... >> अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या Share on: