अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चराग़ By Sher << कोई मंज़िल कभी नहीं आई इस क़दर मैं ने सुलगते हुए... >> अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चराग़ तू मिरी आख़िरी मंज़िल है मिरा साथ न छोड़ Share on: