अब न वो जोश-ए-वफ़ा है न वो अंदाज़-ए-तलब By Sher << बिठा के सामने तुम को बहार... आओ ख़ुश हो के पियो कुछ न ... >> अब न वो जोश-ए-वफ़ा है न वो अंदाज़-ए-तलब अब भी लेकिन तिरे कूचे से गुज़र होता है Share on: