फिर इस के ब'अद ये बाज़ार-ए-दिल नहीं लगना By Sher << ओस से प्यास कहाँ बुझती है ख़ून-ए-उश्शाक़ है मआनी मे... >> फिर इस के ब'अद ये बाज़ार-ए-दिल नहीं लगना ख़रीद लीजिए साहिब ग़ुलाम आख़िरी है Share on: