तुम अपने ठोर-ठिकानों को याद रक्खो 'साज़' By Sher << ज़ख़्म कहते हैं दिल का गह... कोई इस तरह से मिलने का मज... >> तुम अपने ठोर-ठिकानों को याद रक्खो 'साज़' हमारा क्या है कि हम तो कहीं भी रहते हैं Share on: