अब्र से और धूप से रिश्ता है एक सा मिरा By Sher << हर एक साज़ को साज़िंदगाँ ... आवाज़ों में बहते बहते >> अब्र से और धूप से रिश्ता है एक सा मिरा आइने और चराग़ के बीच का फ़ासला हूँ मैं Share on: