अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी By Sher << शहर हो दश्त-ए-तमन्ना हो क... यही इक मश्ग़ला है ज़िंदगी... >> अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी दुआ को फिर भी नहीं देर कुछ असर में लगी Share on: